इस नियम का प्रतिपादन सन् १८२६ में आन्द्रे मैरी एम्पीयर (André-Marie Ampère) ने किया था। इस नियम में किसी बंद लूप पर समाकलित चुम्बकीय क्षेत्र एवं उस लूप से होकर प्रवाहित हो रही कुल धारा के बीच गणितीय सम्बन्ध स्थापित किया गया। जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने सन् १८६१ में इसे विद्युतगतिकीय सिद्धान्त से सिद्ध किया। वर्तमान में यह नियम मैक्स्वेल के चार समीकरणों में से एक है।

आन्द्रे मैरी अम्पीयर
विद्युत धारा, चुंबकीय क्षेत्र पैदा करती है।

एम्पीयर का नियम (मूल रूप में)

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अम्पीयर-मैक्सवेल का परिपथीय नियम केवल स्थैतिक-चुम्बकीय स्थिति में लागू होता है जब बन्द परिपथ में सतत अपरिवर्तनीय धारा धारा बह रही हो। किन्तु जहाँ समय के साथ परिवर्ती विद्युत क्षेत्र हो, वहाँ यह नियम लागू नहीं होता (असत्य हो जाता है)। इसलिये जहाँ परिवर्ती विद्युत क्षेत्र हो, वहाँ इस नियम में संशोधन करना पड़ता है (एक और पद जोड़ना पड़ता है, जिसे 'मैक्सवेल का संशोधन' कहते हैं।)

अम्पीयर का मूल नियम कई तरह से अभिव्यक्त किया जाता है।

समाकलन के रूप में

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इसे इस रूप में भी लिख सकते हैं-

 

जहाँ

  बंद वक्र C के परितः रैखिक समाकलन (line integral) है;
B टेस्ला में चुंबकीय क्षेत्र है;
· अदिश गुणनफल (डॉट प्रोडक्ट) है;

अवकलन रूप (डिफरेंशियल फॉर्म)

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जहाँ

  - कर्ल आपरेटर है।

अम्पीयर नियम का संशोधित रूप : अम्पीयर-मैक्सवेल समीकरण

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अम्पीयर नियम को सभी स्थितियों में लागू होने योग्य बनाने के लिये मैक्सवेल ने इस नियम में एक पद जोड़ा। संशोधित समीकरण निम्नलिखित है-

 

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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