ईडन
ईडन (अंग्रेज़ी: Eden) या ख़ुल्द (अरबी: خلد) कई इब्राहीमी धर्मों (जैसे की ईसाई धर्म और इस्लाम) की मान्यताओं में वह जगह थी जहाँ ईश्वर ने पहले पुरुष (आदम) और पहली स्त्री (हव्वा या ईव) की सृष्टि के बाद उन्हें रखा था। इसे इन धर्मों की धर्मकथाओं में एक सौंदर्य और शांति से भरे उद्यान के रूप में दर्शाया जाता है जहाँ यह दोनों निर्दोष और निष्कपट चरित्र से रहते थे। ईसाई मान्यता के अनुसार, अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने के लिए इन दोनों को पापी ठहराकर उन्हें ईश्वर ने इस उद्यान से बहार निकल दिया था। ईसाई मत की बहुत सी धारणाएँ इस मूल पाप पर आधारित हैं।
ईडन से निकाला
संपादित करेंईडन के उद्यान में आदम और हव्वा बिलकुल अज्ञान और निर्दोष स्थिति में आनंद से बच्चों की तरह रहते थे। वे पूरी तरह नग्न रहते थे क्योंकि उन्हें यौन संबंधों का कोई ज्ञान नहीं था और कोई शर्म नहीं अनुभव होती थी।[1] इसी उद्यान में एक वृक्ष था जिसे "ज्ञान का वृक्ष" कहा जाता है। उसपर लगे फल का खाना ईश्वर ने स्पष्ट रूप से आदम को वर्जित किया था। ईसाई मान्यता के अनुसार एक सर्प ने पहले हव्वा को उकसाया और फिर हव्वा ने आदम को ज्ञान का फल खाने के लिए उकसाया। आदम ने आज्ञा-उल्लंघन की और फल खा लिया। इस से उसकी निष्कपटता ख़त्म हो गई और आदम और हव्वा को एक-दूसरे को देखकर शर्म महसूस होने लगी। उन्होंने कुछ अंजीर के पत्तों के छोटे वस्त्र बनाकर अपने कुछ अंग ढकने का प्रयास किया।[2] जब ईश्वर उनसे मिलने आये और यह देखा तो वह समझ गए की आदम ने ज्ञान का फल खा लिया है और भयंकर क्रोध में आ गए। उन्होंने आदम और हव्वा को ईडन से निकाल दिया। ईसाई मान्यताओं में तब से मानव पापी अवस्था में संसार में भटक रहे हैं।
पतन और मूल पाप की अवधारणाएँ
संपादित करेंइस ईडन-निकाले को ईसाई धर्म में "मानव का पतन" (fall of man, फ़ॉल ऑफ़ मैन) कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि हर मानव एक जन्मजात पापी है जो मरणोपरांत नरक जाएगा क्योंकि आदम और हव्वा का पाप हर मानव पर लागू होता है।[3] इसे "मूल पाप" (original sin, ओरिजिनल सिन) कहा जाता है। जीव हत्या, अनावश्यक हरे पेड़ों की कटाई, किसी को व्यर्थ आघात पहुँचाना, व्यर्थ जल बहाना आदि पाप है। ईसाई धर्म में माना जाता है कि ईसा मसीह ने अपनी क़ुरबानी देकर उन मानवों को नरक से बचाया जो उन्हें अपना भगवान स्वीकारते हैं। इस मान्यता को लेकर बहुत मतभेद हुआ है। शुद्ध रूप से यह अवधारणा यह कहती है कि यदि कोई नवजात शिशु बिना ईसाईकरण समारोह के मर जाए तो वह नरक जाता है।[4] यह भी तात्पर्य निकलता है कि यदि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म के बारे में सुने ही न लेकिन संत का जीवन बसर करे और जीवन भर कोई पाप न करे तो भी वह नरक ही जाएगा क्योंकि वह बिना ईसाई धर्म स्वीकारे वह मूल पाप से लदा हुआ है।[5]
वर्तमान युग में बहुत से ईसाई और ग़ैर-ईसाई लेखकों ने इन मान्यताओं की आलोचना की है। इन आलोचनाओं ने भिन्न रूप लिए हैं: कुछ कहते हैं कि मूल पाप कि अवधारणा से भले लोगों को अकारण ही अपराध-भावना से जीना पड़ता है और उनकी ईश्वर की प्रति भावना प्रेम की कम और डर की ज़्यादा होती है। यह भी कहा गया है कि इन कथाओं में मानवों की ईडन में निर्दोष अवस्था के चित्रण से यौन संबंधों को लेकर अस्वस्थ विचारधाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं, क्योंकि यह एक शक्तिशाली मानवीय भावना है जिसे कुचला तो नहीं जा सकता लेकिन अपराध-भाव से देखने से यह हानिकारक प्रकार से बेढंगी होकर प्रकट होती है।[6]
भारतीय उपमहाद्वीप की लोक-संस्कृति में
संपादित करेंभारतीय उपमहाद्वीप में ईडन की कहानी इस्लामी स्रोतों से आई। क्योंकि आदम पहला पुरुष माना जाता है इसलिए उन्हें "बाबा आदम" कहा जाने लगा और किसी भी पुरानी कहानी को मुहावरे में "बाबा आदम की कहानी" कहा जाता है। अगर किसी स्थान पर कोई न हो तो कहा जाता है कि वहाँ "न आदम था न आदम की ज़ात"। ईडन की कथा में हव्वा ने आदम से ज्ञानफल खाने को कहा था इसलिए अक्सर व्यंग्य में "नारी पुरुष के पतन का कारण है" सुना जाता है। क्षेत्रीय कविता में भी इस कहानी की ओर इशारा किया जाता है। उदाहरण के लिए ग़ालिब की प्रसिद्ध "हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी" नामक ग़ज़ल के इस शेर में एक प्रेमी अपनी चहेती की गली से निकलवाने की बेइज्ज़ती की तुलना आदम के ईडन से निकाले जाने से करता है:
- निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन, बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले[7]
अंग्रेज़ी में "अंजीर के पत्ते" (fig leaf, फ़िग लीफ़) को किसी शर्मनाक कार्य को जैसे-तैसे छुपाने के प्रयास के लिए प्रयोग किया जाता है। "It is a big scandal and this report is just a fig-leaf" का अर्थ हुआ "यह बहुत बड़ा काण्ड है और यह रिपोर्ट तो केवल एक अंजीर का पत्ता (छुपाने का प्रयास) है"।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Ever since Adam and Eve: The evolution of human sexuality". CUP Archive.
... No sex, no death is central to the myth of the Garden of Eden. Adam and Eve ate of the fruit of the tree of knowledge, became sexual beings and were expelled from Paradise ...
- ↑ Clayton Kendall. "What Really Happened in the Garden of Eden?". Vantage Press, Inc, 2007. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780533152919.
... And the eyes of them were both opened, and they knew that they were naked; and they sewed fig leaves together ...
- ↑ Steven D. Hales. "Relativism and the foundations of philosophy". MIT Press, 2006. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780262083539.
... Thus every human being is inherently sinful—even newborn infants and saints—and all need redemption before God or else face damnation and eternal torment ...
- ↑ Antonio L. Carvajal. "Essential Moments". Xlibris Corporation, 2009. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781441505590.
... Even newborn babies who died before they were baptized were not worthy of going to heaven ...
- ↑ Robert Nicole. "The word, the pen, and the pistol: literature and power in Tahiti". SUNY Press, 2001. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780791447390.
... Most missionaries believed firmly in Original Sin. For them there was no such thing as pre-Fall noble savages ...
- ↑ Hans Kung, Hans Küng, John Stephen Bowden. "Women in Christianity". Continuum International Publishing Group, 2005. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780826476906.
... Augustine ... associates this tranmission of 'original sin' with the sexual act ... suppression of sexuality in Western theology and the Western church ...
सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link) - ↑ K. C. Kanda. "Masterpieces of Urdu Ghazal: From the 17th to the 20th Century". Sterling Publishers Pvt. Ltd, 1992. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120711952.
... Nikalna khuld se aadam ka sunte aae the lekin ...