आत्मनिवेदन भारतीय संस्कृति या इनकी असर से जन्मे हिन्दू, बौद्ध, जैन इत्यादि धर्मो के भक्ति मार्ग का एक प्रकार है। धार्मिक ग्रंथो में नवधा भक्ति का वर्णन किया गया है जिनमे से एक आत्मनिवेदन है। आत्मनिवेदन भक्त के द्वारा अपने जीवन में आनेवाली समस्याएँ, बाधाएँ, मुश्किलें और अपने दोषों का ईश्वर के सामने वर्णन करके उसे दूर करने के लिए प्रार्थना करने का एक प्रकार हैं। भक्त भगवान के साथ एकरुप हो जाता है और हर क्षण जो भी उनके जीवन में घतित होता हैं, उनको जो भी चहिए इन सब का परमात्मा के सामने भक्तिभाव पूर्वक निवेदन करता हैं। इससे उनकी समस्याओ का समाधान मिलता हैं और भगवान के प्रति उनकी श्रद्धा द्रढ़ होती है। भक्तिमार्ग में ये साधन भक्त को भाग्यवान् के साथ जोड़ देता है।

आत्मनिवेदन का प्रयोग

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भारत और दूसरे देशों में जन्में भगवान के अनेक भक्तोने अपने जीवन में आत्मनिवेदन का सहारा लिया है। रामकृष्ण परमहंस माँ काली की मूर्ति के सामने आत्मनिवेदन करते थे।[1] आत्मनिवेदन प्रार्थना का भी एक प्रकार है और ये एकदम सरल है। इसमें भक्त को जो भी चाहिए, कोई समस्या हो या भगवान के दर्शन नहीं हो रहे हैं तो भक्त भगवान के सामने गदगद होकर आत्मनिवेदन करता है और प्रार्थना करता है। इससे भक्त का भगवान के साथ आपसी सम्बन्ध बढ़ता है और एसा माना जाता है कि प्रार्थना भगवान अवश्य सुनते हैं।

  1. "10. भूख-प्यास से बेपरवाह". स्पीकिंग ट्री. मूल से 9 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २८ दिसम्बर २०१६.