अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र
आणुविक स्तर पर सतहों को देखने के लिये अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (अंगरेजी में= Scanning Tunneling Microscope(STM)) एक शक्तिशाली तकनीक है। सन १९८१ में गर्ड बिन्निग और हैन्रिक रोह्रर (आई बी एम ज़्यूरिख़) ने इसका आविष्कार किया जिसके लिये सन १९८६ में इन्हे भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया।[1] यह यंत्र टनलिंग धारा के मापन के आधार पर पदार्थ के अवस्था घनत्व को परखता है। यह 0.1 नैनोमीटर की चौड़ाई और 0.01 नैनोमीटर की गहराई तक देख सकता है।[2] यह यंत्र ना सिर्फ अति-निर्वात परिस्तिथियों में, बल्कि खुली हवा तथा द्रव एवं गैस के वातावरण में भी काम कर सकता है। साथ ही लगभग शून्य केल्विन से लेकर कुछ सौ डिग्री सेल्सिअस तापमान तक यह काम कर सकता है।[3].
यह सूक्ष्मदर्शी यंत्र प्रमात्रा टनलिंग के सिद्धांत पर आधारित है। किसी धातु या अर्धचालक की सतह के बहुत पास जब किसी चालक नोक को लाया जाता है, तो इस निर्वात अन्तराल में इलेक्ट्रॉन के बहनें के लिये एक सुरंग (या टनल) बन जाता है। निम्न वोल्टता में इलेक्ट्रॉन की धारा का व्यवहार फर्मी स्तर, Ef, पर नमूने के 'अवस्था के घनत्व' पर निर्भर करता है।[3]. इलेक्ट्रॉन धार के घटबढ़ से प्रतिबिंब बनाया जाता है।
अति-स्वच्छ सतहों और नुकीले नोकों की जरूरत इस तकनीक की कठिनाई है।
टनलिंग
संपादित करेंटनलिंग सिद्धांत का जन्म प्रमात्रा यांत्रिकी से होता है। उदात्त यांत्रिकी के तहत, यदि एक वस्तु एक दिवार से टकराए तो वह टकराकर गिर जाता है, पार नहीं जा पाती। जैसे गेंद को दीवार के दूसरी तरफ खडे दोस्त की ओर फैंकें, तो बेहद आश्चर्य होगा यदि गेंद दीवार के आर-पार हो जाये। परंतु ऐसा ही होता है बहुत ही कम द्रव्यमान के वस्तु, जैसे कि इलेक्ट्रॉन, के साथ। ऐसे वस्तु तरंग नुमा होते हैं, इसलिये एक सुरंग (या टनल) सी बन जाती है और इस वस्तु के आर-पार होने की सम्भावना बढ़ जाती है।[3]
टनलिंग का गणित प्रमात्रा टनलिंग में पढें।
प्रक्रिया
संपादित करेंनोक को नमूने के समीप लाया जाता है, ताकि यह दूरी तकरीबन 4-7 Ǻ हो, जो आकर्षक (3 से 10Ǻ तक) और विकर्षक (3Ǻ से कम) दूरियों के बीच सन्तुलन की स्थिति होती है।[3] टनल (या प्रमात्रा सुरंग) के बनने के बाद, पैजो़विद्युत अंतरक की सहायता से नोक को ३ दिशाओं में घुमाया जाता है। नोक के पास की सतह के अवस्था के घनत्व के बदलाव से टनल धारा में परिवर्तन आता है। इसके चालन के दो प्रकार हैं - या तो धारा को स्थिरांक रखा जाये, या नोक की दूरी को स्थिरांक रखा जाये।[3]
स्थिरांक धारा प्रणाली में पैजो़विद्युत की सहायता से दूरी का नियन्त्र किया जाता है ताकि धारा में बदलाव ना आये।[4][5] स्थिरांक दूरी प्रणाली का फायदा यह है कि यह ज्यादा सम्वेदनशील होता है, क्योंकि इसमें स्थिरांक धारा प्रणाली की तुलना में पैजो़विद्युत दूरी को नियंत्रित नहीं करना पड़ता।
मापयंत्रण
संपादित करेंअवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र के पुर्जे हैं क्रमवीक्षण नोक, पैजो़विद्युत दूरी नियंत्रण, गाढा नमूने से नोक नियंत्रण, कम्पन अवमन्दन और कम्प्युटर।[4]
प्रतिबिंब की विभेदनशीलता नोक के वक्रता के अर्द्ध व्यास पर निर्भर करता है। नोक के अगर दो सिर हों तो प्रतिबिंब गलत बनता है - नोक में सिर्फ एक अणु होना चाहिये। नोक के लिये आजकल कार्बन नैनोंट्यूब का प्रयोग हो रहा है। टंग्स्टन, प्लाटिनम-इरिडियम और सुवर्ण का भी प्रयोग हो रहा है।[2]
कम्पन अवमन्दन की जरूरत का कारण है Ǻ स्तर पर दूरी को बनाये रखने की जरूरत। इसके लिये चुम्बकिय उत्थापन और आजकल कमानी का प्रयोग भी हो रहा है।[3] आवर्त धारा को कम करने के प्रावधान भी किये जाते हैं।
कम्प्युटर का प्रयोग नोक की दूरी का गणन करनें और प्रतिबिंब प्रोसैसिंग में होता है।[4]
अन्य तरीके और उपयोग
संपादित करेंअवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र के आधार पर अन्य यंत्रों का विकास हुआ है। इनमें है:
- तेजोघन अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (PSTM), जो एक प्रकाशिक नोक का प्रयोग करता है तेजोघन को सुरंगित करनें के लिये[2]
- अवलोकन टनलिंग स्थितिज मापी (STP), जो सतह और नोक के बीच के विद्युत स्थितिज को मापता है[2]
- फिरक ध्रुवीकृत अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (SPSTM), जो चुम्बकीय नमूने के सतह का अवलोकन करता है फैरोचुम्बकीय नोक से।[6].
एक और उपयोग है नोक के सहारे सतह को बदलने का। इसका फायदा यह है कि सतह को पहले नोक से अत्यन्त ही सूक्ष्म स्तर पर बदला जा सकता है और फिर उसी नोक से सतह को परखा जा सकता है।
आई बी एम के वैज्ञानिकों ने जेनन अणुओं से अधिशोषित निकेल[2] के सतह का प्रयोग किया है अश्मलेखन के लिये, जो इलेक्ट्रॉन किरण अश्मलेखन से बेहतर है।
हाल के अनुसंधान में पाया गया है कि अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र की सहायता से अणुविकाओं के अन्दर एकल बँध को बदला जा सकता है। आणुविक स्तर पर ऐसे वैद्युत प्रतिरोधन का प्रयोग एक स्विच के रूप में हो सकता है, जो अति सूक्ष्म चिप को बनाने में किया जा सकता है।
पूर्व आविष्कार
संपादित करेंटोपोग्रफाइनर का आविष्कार इन ही सिद्धांतों पर आधारित है, जिसकी अभार-पूर्ति नोबेल कमिटी ने बाद में की।[7].
उल्लेख
संपादित करें- ↑ G. Binnig, H. Rohrer “अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र” आई बी एम जर्नल ऑफ रिसर्च एन्ड डेवलपमेन्ट 30,4 (1986) पुनः प्रकाशित 44,½ Jan/Mar (2000)
- ↑ अ आ इ ई उ C. Bai अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र और उसके प्रयोग Springer Verlag, 2nd edition, New York (1999)
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ C. Julian Chen अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर भूमिका'(1993)
- ↑ अ आ इ K. Oura, V. G. Lifshits, A. A. Saranin, A. V. Zotov, and M. Katayama सतह विज्ञानः भूमिका Springer-Verlag Berlin (2003)
- ↑ D. A. Bonnell and B. D. Huey “अवलोकन अन्वेषिका सूक्ष्मदर्शी यंत्र के मूल सिद्धांत” पुस्तकः अवलोकन अन्वेषिका सूक्ष्मदर्शी यंत्र और वर्णक्रम मापन: सिद्धांत, तकनीक और प्रयोग 2nd edition Ed. By D. A. Bonnell Wiley-VCH, Inc. New York (2001)
- ↑ R. Wiesendanger, I. V. Shvets, D. Bürgler, G. Tarrach, H.-J. Güntherodt, and J.M.D. Coey “फिरक ध्रुवीकृत अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र में प्रगति” Ultramicroscopy 42-44 (1992)
- ↑ R. Young, J. Ward, F. Scire, टोपोग्रफाइनर: सतह के स्थलाकृति का मापन यंत्र, Rev. Sci. Instrum. 43, 999 (1972)
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर फिल्म (mpeg movie 3MB)
- नैनोदुनिया (प्रतिबिंबों से सजीवन)
- SPM - अवलोकन अन्वेषिका सूक्ष्मदर्शी यंत्र
- आई बी एम आल्मेडन अनुसन्धान केन्द्र के अवलोकन अन्वेषिका सूक्ष्मदर्शी यंत्र प्रतिबिंब
- वियेना तकनीकी विश्वविद्यालय के अवलोकन अन्वेषिका सूक्ष्मदर्शी यंत्र प्रतिबिंब
- ५००० रुपयों में अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र बनायें (ऑसिलोस्कोप के अतिरिक्त
- नैनोटाइम्स अनुकरण इन्जिन
- Tersoff, J.: Hamann, D. R.: अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र के सिद्धांत, Physical Review B 31, 1985, p. 805 - 813.
- Bardeen, J.: टनलिंग सिद्धांत, Physical Review Letters 6 (2), 1961, p. 57-59.
- Chen, C. J.: धातुविक सतह पर आणुविक विभेदन और अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र, Physical Review Letters 65 (4), 1990, p. 448-451
- G. Binnig, H. Rohrer, Ch. Gerber, and E. Weibel, Phys. Rev. Lett. 50, 120 - 123 (1983)
- G. Binnig, H. Rohrer, Ch. Gerber, and E. Weibel, Phys. Rev. Lett. 49, 57 - 61 (1982)
- G. Binnig, H. Rohrer, Ch. Gerber, and E. Weibel, Appl. Phys. Lett., Vol. 40, Issue 2, pp. 178-180 (1982)
- R. V. Lapshin, Feature-oriented scanning methodology for probe microscopy and nanotechnology, Nanotechnology, volume 15, issue 9, pages 1135-1151, 2004