अराजकता
अराजकता (anarchy) एक आदर्श है जिसका सिद्धांत अराजकतावाद (Anarchism) है। अराजकतावाद राज्य को समाप्त कर व्यक्तियों, समूहों और राष्ट्रों के बीच स्वतंत्र और सहज सहयोग द्वारा समस्त मानवीय संबंधों में न्याय स्थापित करने के प्रयत्नों का सिद्धांत है। अराजकतावाद के अनुसार कार्यस्वातंत्र्य जीवन का गत्यात्मक नियम है और इसीलिए उसका मंतव्य है कि सामाजिक संगठन व्यक्तियों के कार्य स्वातंत्र्य के लिए अधिकतम अवसर प्रदान करे। मानवीय प्रकृति में आत्मनियमन की ऐसी शक्ति है जो बाह्य नियंत्रण से मुक्त रहने पर सहज ही सुव्यवस्था स्थापित कर सकती है। मनुष्य पर अनुशासन का आरोपण ही सामाजिक और नैतिक बुराइयों का जनक है। इसलिए हिंसा पर आश्रित राज्य तथा उसकी अन्य संस्थाएँ इन बुराइयों को दूर नहीं कर सकतीं। मनुष्य स्वभावत: अच्छा है, किंतु ये संस्थाएँ मनुष्य को भ्रष्ट कर देती हैं। बाह्य नियंत्रण से मुक्त, वास्तविक स्वतंत्रता का सहयोगी सामूहिक जीवन प्रमुख रीति से छोटे समूहों से संभव है; इसलिए सामाजिक संगठन का आदर्श संघवादी है।
सिद्धान्त का प्रवर्तन एवं विकास
संपादित करेंसुव्यवस्थित रूप में अराजकतावाद के सिद्धांत को सर्वप्रथम प्रतिपादित करने का श्रेय स्तोइक विचारधारा के प्रवर्त्तक ज़ेनो को है। उसने राज्यरहित ऐसे समाज की स्थापना पर जोर दिया जहाँ निरपेक्ष समानता एवं स्वतंत्रता मानवीय प्रकृति की सत्प्रवृत्तियों को सुविकसित कर सार्वभौम सामंजस्य सथापित कर सके। दूसरी शताब्दी के मध्य में अराजकतावाद के साम्यवादी स्वरूप के प्रवत्र्तक कार्पोक्रेतीज़ ने राज्य के अतिरिक्त निजी संपत्ति के भी उन्मूलन की बात कही। मध्ययुग के उत्तरार्ध में ईसाई दार्शनिकों तथा समुदायों के विचारों और संगठन में कुछ स्पष्ट अराजकतावादी प्रवृत्तियाँ व्यक्त हुईं जिनका मुख्य आधार यह दावा था कि व्यक्ति ईश्वर से सीधा रहस्यात्मक संबंध स्थापित कर पापमुक्त हो सकता है।
आधुनिक अर्थ में व्यवस्थित ढंग से अराजकतावादी सिद्धांत का प्रतिपादन विलियम गॉडविन ने किया जिसके अनुसार सरकार और निजी संपत्ति वे दो बुराइयाँ हैं जो मानव जाति की प्राकृतिक पूर्णता की प्राप्ति में बाधक हैं। दूसरों को अधीनस्थ करने का साधन होने के कारण सरकार निरंकुशता का स्वरूप है और शोषण का साधन होने के कारण निजी संपत्ति क्रूर अन्याय। परंतु गॉडविन ने सभी संपत्ति को नहीं, केवल उसी संपत्ति को बुरा बताया जो शोषण में सहायक होती है। आदर्श सामाजिक संगठन की स्थापना के लिए उसने हिंसात्मक क्रांतिकारी साधनों को अनुचित ठहराया। न्याय के आदर्श के प्रचार से ही व्यक्ति में वह चेतना लाई जा सकती है जिससे वह छोटी स्थानीय इकाइयों की आदर्श अराजकतावादी प्रसंविदात्मक व्यवस्था स्थापित करने में सहयोग दे सके।
इसके बाद दो विचारधाराओं ने विशेष रूप से अराजकतावादी सिद्धांत के विकास में योग दिया। एक थी चरम व्यक्तिवाद की विचारधारा, जिसका प्रतिनिधित्व हर्बर्ट स्पेंसर करते हैं। इन विचारकों के अनुसार स्वतंत्रता और सत्ता में विरोध है और राज्य अशुभ ही नहीं, अनावश्यक भी है। किंतु ये विचारक निश्चित रूप से निजी संपत्ति के उन्मूलन के पक्ष में नहीं थे और न संगठित धर्म के ही विरुद्ध थे।
दूसरी विचारधारा फ़ुअरबाख (Feuerbach) के दर्शन से संबंधित थी जिसने संगठित धर्म तथा राज्य के पारभौतिक आधार का विरोध किया। फ़ुअरबाख़ के क्रांतिकारी विचारों के अनुकूल मैक्स स्टर्नर ने समाज को केवल एक मरीचिका बताया तथा दृढ़ता से कहा कि मनुष्य का अपना व्यक्तित्व ही एक ऐसी वास्तविकता है जिसे जाना जा सकता है। वैयक्तिकता पर सीमाएँ निर्धारित करनेवाले सभी नियम अहं के स्वस्थ विकास में बाधक हैं। राज्य के स्थान पर "अहंवादियों का संघ" (ऐसोसिएशन ऑव इगोइस्ट्स) हो तो आदर्श व्यवस्था में आर्थिक शोषण का उन्मूलन हो जाएगा, क्योंकि समाज का प्रमुख उत्पादन स्वतंत्र सहयोग का प्रतिफल होगा। क्रांति के संबंध में उसका यह मत था कि हिंसा पर आश्रित राज्य का उन्मूलन हिंसा द्वारा ही हो सकता है।
अराजकतावाद को जागरूक जन आंदोलन बनाने का श्रेय प्रूधों (Proudhon) को है। उसने संपत्ति के एकाधिकार तथा उसके अनुचित स्वामित्व का विरोध किया। आदर्श सामाजिक संगठन वह है जो "व्यवस्था में स्वतंत्रता तथा एकता में स्वाधीनता" प्रदान करे। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दो मौलिक क्रांतियाँ आवश्यक हैं : एक का संचालन वर्तमान आर्थिक व्यवस्था के विरुद्ध तथा दूसरे का वर्तमान राज्य के विरुद्ध हो। परंतु किसी भी स्थिति में क्रांति हिंसात्मक न हो, वरन् व्यक्ति की आर्थिक स्वतंत्रता तथा उसके नैतिक विकास पर जोर दिया जाए। अंतत: प्रूधों ने स्वीकार किया कि राज्य को पूर्णरूपेण समाप्त नहीं किया जा सकता, इसलिए अराजकतावाद का मुख्य उद्देश्य राज्य के कार्यों को विकेंद्रित करना तथा स्वतंत्र सामूहिक जीवन द्वारा उसे जहाँ तक संभव हो, कम करना चाहिए।
बाकूनिन ने आधुनिक अराजकतावाद में केवल कुछ नई प्रवृत्तियाँ ही नहीं जोड़ीं, वरन् उसे समष्टिवादी स्वरूप भी प्रदान किया। उसने भूमि तथा उत्पादन के अन्य साधनों के सामूहिक स्वामित्व पर जोर देने के साथ-साथ उपभोग की वस्तुओं के निजी स्वामित्व को भी स्वीकार किया। उसके विचार के तीन मूलाधार हैं : अराजकतावाद, अनीश्वरवाद तथा स्वतंत्र वर्गों के बीच स्वेच्छा पर आधारित सहयोगिता का सिद्धांत। फलत: वह राज्य, चर्च और निजी संपत्ति, इन तीनों संस्थाओं का विरोधी है। उसके अनुसार वर्तमान समाज दो वर्गों में विभाजित है : संपन्न वर्ग जिसके हाथ में राजसत्ता रहती है, तथा विपझ वर्ग जो भूमि, पूंजी और शिक्षा से वंचित रहकर पहले वर्ग की निरंकुशता के अधीन रहता है, इसलिए स्वतंत्रता से भी वंचित रहता है। समाज में प्रत्येक के लिए स्वतंत्रता-प्राप्ति अनिवार्य है। इसके लिए दूसरों को अधीन रखनेवाली हर प्रकार की सत्ता का बहिष्कार करना होगा। ईश्वर और राज्य ऐसी ही दो सत्ताएँ हैं। एक पारलौकिक जगत् में तथा दूसरी लौकिक जगत् में उच्चतम सत्ता के सिद्धांत पर आधारित है। चर्च पहले सिद्धांत का मत्र्त रूप है। इसलिए राज्यविरोधी क्रांति चर्चविरोधी भी हो। साथ ही, राज्य सदैव निजी संपत्ति का पोषक है, इसलिए यह क्रांति निजी संपत्तिविरोधी भी हो। क्रांति के संबंध में बाकूनिन ने हिंसात्मक साधनों पर अपना विश्वास प्रकट किया। क्रांति का प्रमुख उद्देश्य इन तीनों संस्थाओं का विनाश बताया गया है, परंतु नए समाज की रचना के विषय में कुछ नहीं कहा गया। मनुष्य की सहयोगिता की प्रवृत्ति में असीम विश्वास होने के कारण बाकूनिन का यह विचार था कि मानव समाज ईश्वर के अंधविश्वास, राज्य के भ्रष्टाचार तथा निजी संपत्ति के शोषण से मुक्त होकर अपना स्वस्थ संगठन स्वयं कर लेगा। क्रांति के संबंध में उसका विचार था कि उसे जनसाधारण की सहज क्रियाओं का प्रतिफल होना चाहिए। साथ ही, हिंसा पर अत्यधिक बल देकर उसने अराजकतावाद में आतंकवादी सिद्धांत जोड़ा।
पिछली शताब्दी के उत्तरार्ध में अराजकतावाद ने अधिक से अधिक साम्यवादी रूप अपनाया है। इस आंदोलन के नेता क्रोपात्किन ने पूर्ण साम्यवाद पर बल दिया। परंतु साथ ही उसने जनक्रांति द्वारा राज्य को विनिष्ट करने की बात कहकर सत्तारूढ़ साम्यवाद को अमान्य ठहराया। क्रांति के लिए उसने भी हिंसात्मक साधनों का प्रयोग उचित बताया। आदर्श समाज में कोई राजनीतिक संगठन न होगा, व्यक्ति और समाज की क्रियाओं पर जनमत का नियंत्रण होगा। जनमत आबादी की छोटी-छोटी इकाइयों में प्रभावोत्पादक होता है, इसलिए आदर्श समाज ग्रामों का समाज होगा। आरोपित संगठन की कोई आवश्यकता न होगी क्योंकि ऐसा समाज पूर्णरूपेण नैतिक विधान के अनुरूप होगा। हिंसा पर आश्रित राज्य को संस्था के स्थान पर आदर्श समाज के आधार ऐच्छिक संघ और समुदाय होंगे और उनका संगठन नीचे से विकसित होगा। सबसे नीचे स्वतंत्र व्यक्तियां के समुदाय, कम्यून होंगे, कम्यून के संघ प्रांत और प्रांत के संघ राष्ट्र होंगे। राष्ट्रों के संघ यूरोपीय संयुक्त राष्ट्र की और अंतत: विश्व संयुक्त राष्ट्र की स्थापना होगी।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंhttp://omprakashkashyap.wordpress.com/समाजवाद-के-आधुनिक-विकल्प/
गान
संपादित करेंलेओ फेरे (गान इस्का वानर ‒ पेपे ‒ के लिए है)
सामान्य सामग्री
संपादित करें- "An Anarchist FAQ Webpage" – An Anarchist FAQ
- Anarchist Theory FAQ by Bryan Caplan
- Anarchism Page - faqs, library, resources
- Infoshop.org – Infoshop.org; anarchist news, information, and online library.
- Anarchism.net – a pluralist resource on anarchism
जीवनी आदि
संपादित करें- Daily Bleed's Anarchist Encyclopedia –, 700+ entries, with short bios, links & dedicated pages.
- Anarchy Archives – Anarchy Archives; information relating to famous anarchists including their writings.
- Anarchist virtual library – containing 768 books, booklets and texts about socialist anarchism.
- Anarchist virtual library – Molinari Institute; online booklets and texts about market anarchism.
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