अब्बासी ख़िलाफ़त

तीसरा इस्लामिक खिलाफत (शासन) और दूसरा इस्लामिक राजवंश
(अब्बासी से अनुप्रेषित)

अब्बासी (अरबी: العبّاسيّون‎‎, अल-अब्बासियून; अंग्रेज़ी: Abbasids) वंश के शासक इस्लाम के ख़लीफ़ा थे जो सन् 750 के बाद से 1257 तक इस्लाम के धार्मिक प्रमुख और इस्लामी साम्राज्य के शासक रहे। इनके पूर्वज मुहम्मद साहब से संबंधित थे इसलिए इनको सुन्नियो के साथ साथ शिया विचारधारा के मुसलमानों का भी बहुत सहयोग मिला जिसमें ईरान तथा ख़ोरासान तथा शाम की जनता शामिल थी। इस जनसहयोग की बदौलत उन्होंने उमय्यदों को हरा दिया और ख़लीफ़ा बनाए गए। उन्होंने उमय्यदों के विपरीत साम्राज्य में ईरानी तत्वों को समावेश किया और उनके काल में इस्लामी विज्ञान, कला तथा ज्योतिष में काफ़ी नए विकास हुए।[1]

Islamic Abbasid Caliphate
अब्बासी खिलाफत
‎الخلافة العباسي الاسلامية

750 ईस्वी–1258 ईस्वी
 

अब्बासी ख़लीफ़ा का मानचित्र में स्थान
चित्र में अब्बासी खिलाफत लाल रंग में प्रदर्शित है।
राजधानी बगदाद
भाषाएँ अरबी भाषा (official), अरमेइन, अरमियन, बर्बर, जार्जियन, ग्रीक, हिब्रू, फारसी
धार्मिक समूह इस्लाम
शासन साम्राज्य
अमीर अल-मूमिनीन¹
 -  721–754 अश सफ्फाह
 -  786–809 हारुन अल रशीद
 -  1261–1262 अल मूतासिर II
 -  1242–1258 अल मूस्तसीम
इतिहास
 -  स्थापित 750 ईस्वी
 -  अंत 1258 ईस्वी
Area 1,00,00,000 किमी ² (38,61,022 वर्ग मील)
जनसंख्या
 -  est. 5,00,00,000 
     


घनत्व

5 /किमी ²  (12.9 /वर्ग मील)
मुद्रा अब्बासी दिनार
¹ अमीर अल-मूमिनीन (أمير المؤمنين), ख़लीफ़ा (خليف)
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अपने चरम पर अब्बासियों का क्षेत्र (हरे रंग में, गाढ़े हरे रंग वाले क्षेत्र उनके द्वारा जल्दी ही खोए गए)

सन् 762 में उन्होंने बग़दाद की स्थापना की जहाँ ईरानी सासानी निर्माण कला तथा अरबी संस्कृति से मिश्रित एक राजधानी का विकास हुआ। यद्यपि 10वीं सदी में उनकी वंशानुगत शासन की परम्परा टूट गई पर ख़िलाफ़त बनी रही। इस परंपरा टूटने के कारण शिया इस्लाम में इस्माइली तथा बारहवारी सम्प्रदायों का जन्म हुआ जो इस्लाम के उत्तराधिकारी के रूप में मुहम्मद साहब के विभिन्न वंशजों का समर्थन करते थे। उनके काल में इस्लाम भारत में भी फैल गया लेकिन 1257 में उस समय अमुस्लिम रहे मंगोलों के आक्रमण से बग़दाद नष्ट हो गया।

इन्हें भी देखें

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  1. Canfield, Robert L. (2002). Turko-Persia in Historical Perspective. Cambridge University Press. पृ॰ 5. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780521522915.