अजमेर जिला

राजस्थान,भारत का ज़िला
(अजमेर ज़िला से अनुप्रेषित)

अजमेर भारतीय राज्य राजस्थान का एक जिला है। राजस्थान राज्य का हृदयस्थल अजमेर जिला राजस्थान राज्य के मध्य में 25 डिग्री 38’ से 26 डिग्री 50’ उतरी अक्षांश एवं 73 डिग्री 54’ से 75 डिग्री 22’ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित हैं। अजमेर उत्तर-पश्चिमी रेल्वे के दिल्ली-अहमदाबाद मार्ग पर स्थित हैं जो जयपुर के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। अजमेर तारागढ़ की पहाड़ी, जिसके शिखर पर किला है, निचली ढलानों पर यह शहर स्थित है। पर्वतीय क्षेत्र में बसा अजमेर अरावली पर्वतमाला का एक हिस्सा है, जिसके दक्षिण-पश्चिम में लूणी नदी व पूर्वी हिस्से में बनास की सहायक नदियाँ बहती हैं। मुग़लों की बेगम और शहजादियाँ यहाँ अपना समय व्यतीत करती थी। इस क्षेत्र को इत्र के लिए प्रसिद्ध बनाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था। कहा जाता है कि नुरजहाँ ने गुलाब के इत्र को ईजाद किया था। कुछ लोगों का मानना है यह इत्र नूरजहाँ की माँ ने ईजाद किया था। अजमेर में पान की खेती भी होती है। इसकी महक और स्वाद गुलाब जैसी होती है। वर्तमान में जिला 12 उपखण्ड, 11 पंचायत समिति समिति व 19 तहसील में विभाजित है।

अजमेर
—  जिला  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य राजस्थान
जिलाधीश अंशदीप
नगर निगम अध्यक्ष ब्रजलता हाड़ा
जनसंख्या
घनत्व
25,83,052 (2011 के अनुसार )
• 292/किमी2 (756/मील2)
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)
8,481 km² (3,275 sq mi)
• 870 मीटर (2,854 फी॰)
आधिकारिक जालस्थल: ajmer.nic.in/index.html

निर्देशांक: 26°16′N 74°25′E / 26.27°N 74.42°E / 26.27; 74.42

चित्र:अजमेर में आनासागर झील.JPG
अजमेर में आनासागर झील

अजमेर शहर का नाम अजयमेरू दुर्ग के नाम पर पड़ा हैं। जिसकी स्थापना 721 ई. में चौहान राजाअजयराज चौहान प्रथम ने की थी। बाद के पाठ प्रबंध-कोश में कहा गया है कि यह 8 वीं शताब्दी के राजा अजयराजा चौहान प्रथम थे जिन्होंने अजयमेरु किले का निर्माण किया था, जिसे बाद में अजमेर के तारागढ़ किले के रूप में जाना जाने लगा। [3] इतिहासकार आरबी सिंह के अनुसार, अजयराजा प्रथम ने शायद शहर की स्थापना की थी, क्योंकि वहां 8वीं शताब्दी सीई के शिलालेख पाए गए हैं। [6] सिंह का मानना ​​है कि अजयराज चौहान द्वितीय ने बाद में शहर का विस्तार किया, महलों का निर्माण किया, और चाहमना राजधानी को शाकंभरी से अजमेर स्थानांतरित कर दिया। 7[1]घुुुुघरा घाटी को केंद्र मानकर बसाया गया।12 वीं शताब्दी में चौहान राजा अजयराज द्वितीय के समय यह एक महत्त्वपूर्ण नगर बन गया था। अजमेर का वास्तविक संस्थापक अजयराज चौहान प्रथम को माना जाता हैं। चौहान राजा अजयराज द्वितीया न1113 ई. में अजमेर नगर की स्थापना की थी । अजयराज द्वितीय ने अपनी राजधानी का नाम अजयमेरु रखा । जिसे कर्नल टाड ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में राजपूताने की कुँजी कहा है। जिसका मुख्यालय अजमेर है।जिसका क्षेत्रफल - 8841 वर्ग कि॰मी॰ है। 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 2584913 है।

राजपुताना व बंबई गजट के अनुसार अजमेर पर 700 वर्षों तक राजपूत चौहानों का राज था। [1] अजमेर में 1153 ई में बिसलदेव चौहान उर्फ सम्राट विग्रहराज चौहान या विग्रहराज चतुर्थ (1153-1163 ई) के एक क्षत्रिय राजपूत सम्राट थे, उन्होने अपने पड़ोसी राजाओं को जीतकर राज्य को एक साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया इन्होंने अपने क्षेत्र में मुस्लिम आक्रान्तों को घुसने नहीं दिया। इन राजा के राज्य में वर्तमान राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के क्षेत्र सम्मिलित थे। उनकी राजधानी अजयमेरु (वर्तमान अजमेर) थी जहाँ उन्होने अनेकों भवनों का निर्माण कराया। जब अजमेर पर मुसलमान शासकों का आधिपत्य हो गया तो उनमें से अधिकांश भवनों को या तो नष्ट कर दिया गया या उन्हें 'इस्लामी भवनों' में परिवर्तित कर दिया गया। इन्हीं में से वीसलदेव द्वारा निर्मित सरस्वतीकण्ठाभरणविद्यापीठ था जो संस्कृत अध्ययन का केन्द्र था। इसे बदलकर 'अढाई दिन का झोपड़ा' नामक मस्जिद बना दी गयी। विग्रहराज जी को 'बिसल देव' उपनाम से बेहतर जाना जाता था। ://en.m.wiki.x.io/wiki/Taragarh_Fort,_Ajmer कुछ विद्वानों का मत है, कि इसका निर्माता कुतुबुद्दीन ऐबक था। कहावत है, कि यह इमारत अढ़ाई दिन में बनकर तैयार हुई थी, किन्तु ऐतिहासिकों का मत है, कि इस नाम के पड़ने का कारण इस स्थान पर मराठा काल में होने वाला अढ़ाई दिन का मेला है। इस इमारत की क़ारीगरी विशेषकर पत्थर की नक़्क़ाशी प्रशंसनीय है।मुहम्मद ग़ौरी ने जब 1192 ई. में भारत पर आक्रमण किया, तो उस समय अजमेर राजपूत राजा पृथ्वीराज तृतीया के राज्य का एक बड़ा नगर था।

पृथ्वीराज तृतीया की पराजय के पश्चात दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार होने के साथ अजमेर पर भी उनका क़ब्ज़ा हो गया और फिर दिल्ली के भाग्य के साथ-साथ अजमेर के भाग्य का भी निपटारा होता रहा।

1193 में दिल्ली के ग़ुलाम वंश ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। मुग़ल सम्राट अकबर को अजमेर से बहुत प्रेम था, क्योंकि उसे मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की यात्रा में बड़ी श्रृद्धा थी। एक बार वह आगरा से पैदल ही चलकर दरग़ाह की ज़ियारत को आया था। मुईनुद्दीन चिश्ती 12वीं शती ई. में ईरान से भारत आए थे। अकबर और जहाँगीर ने इस दरग़ाह के पास ही मस्जिदें बनवाई थीं। शाहजहाँ ने अजमेर को अपने अस्थायी निवास-स्थान के लिए चुना था। निकटवर्ती तारागढ़ की पहाड़ी पर भी उसने एक दुर्ग-प्रासाद का निर्माण करवाया था, जिसे विशप हेबर ने भारत का जिब्राल्टर कहा है। यह निश्चित है, मुगलकाल में अजमेर को अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति के कारण राजस्थान का नाक़ा समझा जाता था। अजमेर के पास ही अनासागर झील है, जिसकी सुन्दर पर्वतीय दृश्यावली से आकृष्ट होकर शाहजहाँ ने यहाँ पर संगमरमर के महल बनवाए थे। यह झील अजमेर-पुष्कर मार्ग पर है। सन् 1878 में अन्ग्रेजों ने वर्धनोरा (बदनोरा) राज्य में अजमेर और केकड़ी प्रान्त को शामिल कर अजमेर मेरवाड़ा के नाम से संयुक्त स्टेट बनाकर केन्द्रीय शासक प्रदेश बनाया था। 1956 में यह राजस्थान राज्य का हिस्सा बन गया। अरबों से युद्ध भूमि में लड़ते हुए राणा सांगा की भाती इनका दाहिना हाथ कट गया था। बीसलदेव चौहानचौहान वंश की सबसे प्रतापी राजा जिन्होंने अजमेर पर शासन किया वह अजमेर का साम्राज्य आधुनिक मेवाड़ का साम्राज्य भी इसमें सम्मिलित था जैसे भीलवाड़ा राजसमंद इन्हीं के साम्राज्य में आते थे।

यातायात और परिवहन

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अजमेर पहुँचने के लिए सबसे बेहतर विकल्प रेल मार्ग है। दिल्ली से दिल्ली-अहमदाबाद एक्सप्रेस द्वारा आसानी से अजमेर पहुँचा जा सकता है। रेलमार्ग के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से निजी वाहन द्वारा भी बेहरोड और जयपुर होते हुए अजमेर पहुँचा जा सकता है।

कृषि और खनिज

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अजमेर में कृषि मुख्य व्यवसाय है और मुख्यतः मक्का, गेहूँ, बाजरा, चना, कपास, तिलहन, मिर्च व प्याज़ उगाए जाते हैं। यहाँ पर अभ्रक, लाल स्फटिक घातु और इमारती पत्थर की खुदाई होती है।

उद्योग और व्यापार

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सड़क व रेल मार्गों से जुड़ा अजमेर नमक, अभ्रक, कपड़े व कृषि उत्पादों का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है और यहाँ तिलहन, होज़री, ऊन, जूते, साबुन व दवा निर्माण से जुड़े छोटे-छोटे अनेक उद्योग हैं। अजमेर कपड़ों की रंगाई व बुनाई तथा अपने हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है।

बाहरी कड़ियाँ

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अजमेर

तारागढ़ अपने आप में राजपूतों की विरासत को बयां करती है.

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 13 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 मार्च 2016. Archived 2016-03-13 at the वेबैक मशीन