अच्युत

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विभिण्डुकियों द्वारा परिचालित सत्र में इन्होंने प्रतिहर्ता का काम किया था, जिसका वर्णन जैमनीय ब्राह्मण में मिलता है। प्रतिहर्ता का काम किसी भी किये गये वैदिक वर्णन का प्रयोग के रूप में समझा जाना होता है। जमिनी पद्धति में ज्योतिष के प्रत्येक फ़र्मूले को विभिन्न लोगों की कुन्डलिया और जन्म समय को खुद के द्वारा समझ कर और अपनी देख रेख में प्रसव आदि के समय का ज्ञान रखने के बाद कालान्तर में जैमिनी पद्धति में वर्णन किया गया था, उसका हर प्रकार से सही उतरने पर ही जैमिनी सिद्धांत का निर्णय जन सामान्य के लिये उपयोग में लाया गया था।