अक्षरपल्ली संख्या-लेखन की एक पद्धति है जो पूर्व-आधुनिक काल तक भारत में पाण्डुलिपियों के पन्नों की पृष्टसंख्या दर्शाने के लिये प्रयुक्त होती थी।

मलयालम भाषा की एक पुस्तक के पृष्टांकन के लिये प्रयुक्त अक्षरलल्ली संख्याएँ[1]

इस प्रणाली के उत्पत्ति के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि इसकी उत्पत्ति ब्राह्मी की संख्या पद्धति से हुआ होगा। इस पद्धति का उपयोग जैन ग्रन्थों में बहुतायत में हुआ है जो १६वीं शताब्दी तक देखने को मिलती है। नेपाल में भी यह प्रणाली बहुत समय तक प्रचलन में रही। केरल आदि में यह प्रणाली १९वीं शताब्दी तक देखने को मिलती है।

उदाहरण : संख्याओ को निरूपित करने के लिये पदों (syllables) का उपयोग

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उदाहरण निम्नलिखित सारणी में कुछ उदाहरण दिये गये हैं। ध्यान रहे कि संख्याओं के लिये प्रयुक्त सभी शब्द (अक्षरसमूह) नहीं दिये गये हैं। [2]

संख्या IAST देवनागरी
1 e, sva, rūṁ ए, स्व, रूं
2 dvi, sti, na द्वि, स्ति, न
3 tri, śrī, maḥ त्रि, श्री, मह्
4 ṅka, rṅka, ṅkā, ṇka, rṇka, ṣka, rṣka ङ्क, र्ङ्‍क, ङ्का, ण्क, र्ण्क, ष्क, र्ष्क
5 tṛ. rtṛ, rtṛā, hṛ, nṛ, rnṛ तृ, र्तृ, र्तृ, हृ, नृ, र्नृ
6 phra, rphra, rphru, ghna, bhra, rpu, vyā, phla फ्र, र्फ्र, र्फ्रु, घ्न, भ्र, र्पु, व्या, फ्ल
7 gra, grā, rgrā, rgbhrā, rggā, bhra ग्र, ग्रा, र्ग्रा, र्ग्‍भ्रा, र्ग्‍गा, भ्र
8 hra, rhra, rhrā, dra ह्र, र्ह्र, र्ह्रा, द्र
9 oṁ, ruṁ, ru, uṁ, a, rnuṁ ॐ, रुं, रु, उं, अ, र्नुं
10 ḷa, ṇṭa, ḍa, a, rpta ळ, ण्त, ड, र्प्त

20, 30, . . . 100 के लिये प्रतीक है। उसके बाद 200,
300, 400 के लिये प्रतीक हैं। लेकिन उससे बड़े संख्याओं के लिये प्रतीक नहीं है।
शायद इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती थी क्योंकि यह प्रणाली पृष्ठों पर संख्या डालने के लिये प्रयुक्त होती थी।
[3]

  1. Cecil Bendall (Oct 1896). "On a System of Letter Numerals Used in South India". The Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland: 789–792. JSTOR 25207813.
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Datta नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; alpha नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।

इन्हें भी देखें

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