यशोधरा (काव्य)
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मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है जिसका प्रकाशन सन् 1933 ई. में हुआ। अपने छोटे भाई सियारामशरण गुप्त के अनुरोध करने पर मैथिलीशरण गुप्त ने यह पुस्तक लिखी थी। यशोधरा महाकाव्य में गौतम बुद्ध के गृह त्याग की कहानी को केन्द्र में रखकर यह महाकाव्य लिखा गया है। इसमें गौतम बुद्ध की पत्नी राजकुमारी यशोधरा की विरहजन्य पीड़ा को विशेष रूप से महत्त्व दिया गया है। यह गद्य-पद्य मिश्रित विधा है जिसे चम्पूकाव्य कहा जाता है।
उद्देश्य
संपादित करेंयशोधरा का उद्देश्य है पति-परित्यक्तों यशोधरा के हार्दिक दु:ख की व्यंजना तथा वैष्णव सम्प्रदाय के सिद्धांतों की स्थापना। 'यशोधरा' के माध्यम से सन्यास पर गृहस्थ प्रधान वैष्णव सम्प्रदाय का वर्णन किया है।
कथानक
संपादित करेंकथारम्भ गौतम के वैराग्य चिंतन से होता है। जरा, रोग, मृत्यु आदि के दृश्यों से वे भयभीत हो उठते हैं। अमृत तत्व की खोज के लिए गौतम पत्नी और पुत्र को सोते हुए छोड़कर 'महाभिनिष्क्रमण' करते हैं। विरह की दारुणता से भी अधिक यशोधरा को खलता है प्रिय का चोरी-चोरी जाना। उसे मरण का भी अधिकार नहीं है, क्योंकि उस पर राहुल के पालन-पोषण का दायित्व है। फलत: "आँचल में दूध" और "आँखों में पानी" लिए वह जीवनयापन करती है। सिद्धि प्राप्त होने पर बुद्ध लौटते हैं, सब लोग उनका स्वागत करते हैं परंतु यशोधरा अपने कक्ष में रहती हैं। अंतत: स्वयं भगवान उसके द्वार पहुँचते हैं और भीख माँगते हैं। यशोधरा उन्हें अपनी अमूल्य निधि राहुल को दे देती है तथा स्वयं भी उनका अनुसरण करती है।
भाषा शैली
संपादित करें'यशोधरा' का प्रमुख रस शृंगार है, शृंगार में भी केवल विप्रलम्भ। शृंगार के अतिरिक्त इसमें करुण, शांत एवं वात्सल्य भी हैं। काव्य में छायावादी शिल्प का आभास है। यशोधरा की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है- प्रौढ़ता, कांतिमयता और गीतिकाव्य के उपयुक्त मृदुलता और मसृणता उसके विशेष गुण हैं।