उदयपुर के पर्यटन स्थल

उदयपुर को पहले मेवाड़ के नाम से जाना जाता था। इस शहर ने बहुत कम समय में देश को कई देशभक्त दिए हैं। यहां का मेवाड़ राजवंश अपने को सूर्य से जोड़ता है। यहां का इतिहास निरंतर संघर्ष का इतिहास रहा है। यह संघर्ष स्वतंत्रता, स्वाभिमान तथा धर्म के लिए हुआ। संघर्ष कभी राजपूतों के बीच तो कभी मुगलों तथा अन्य शासकों के साथ हुआ। यहां जैसी देशभक्ति, उदार व्यवहार तथा स्वतंत्रता के लिए उत्कृष्ट इच्छा किसी दूसरी जगह देखने को नहीं मिलती है।

उदयपुर जिसे झीलों की नगरी कहा जाता है उत्तरी भारत का सबसे आकर्षक पर्यटक शहर माना जाता है। यहां पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बहुत कुछ है। झीलों के साथ मरुभूमि का अनोखा संगम और कहीं नहीं देखने को मिलता है। यह शहर अरावली पहाड़ी के पास राजस्थान में स्थित है। उदयपुर को हाल ही में विश्व का सबसे खूबसूरत शहर घोषित किया गया है। उदयपुर की पोर्टल वेबसाइट है 'वेब उदयपुर'। इस वेबसाइट में उदयपुर के बारे में हर तरह की जानकारियां उपलब्ध है। सभी पर्यटन स्थलों का विस्तृत वर्णन है इस का पता है।

10 सबसे अच्छी उदयपुर में घूमने लायक जगह |

Top 10 Places to Visit in Udaipur

1. बागोर की हवेली (Bagore Ki Haveli) आइये जानते हैं कि इस हवेली का क्या इतिहास है? आईये जानते हैं कि इस खूबसूरत हवेली को देखने के लिए कैसे पहुंचा जा सकता है?

2. सहेलियों की बारी (Saheliyon Ki Bari) आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत गार्डन का क्या इतिहास है? आईये जानते हैं कि इस गार्डन में घूमने कैसे जाया जा सकता है?

3. मोती मगरी (Moti Magri) आइये जानते हैं कि मोती मगरी का क्या इतिहास है? आइये जानते हैं कि इस जगह पर कैसे पहुंचा जा सकता है?

4. शिल्पग्राम (Shilpgram) आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत जगह का क्या इतिहास रहा है? आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत जगह पर कैसे पहुंचा जा सकता है?

5. विंटेज कार संग्रहालय (Vintage Car Museum) आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत म्यूजियम का इतिहास क्या रहा है? आइये जानते हैं कि इस खुबसूरत कार म्यूजियम को देखने कैसे पहुंचा जा सकता है?

6. स्थल लेक पैलेस (Sthal Lake Palace) आइये जानते हैं कि इस पैलेस का इतिहास क्या रहा है? आइये जानते हैं कि इस पैलेस पर घूमने कैसे पहुंचा जा सकता है?

7. फ़तेह सागर झील (Fateh Sagar Lake) आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत झील का क्या इतिहास रहा है? आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत झील पर घूमने कैसे पहुंचा जा सकता हैं?

8. जगदीश मंदिर (Jagdish Temple) आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत मंदिर का क्या इतिहास रहा है? आइये जानते हैं कि इस खूबसूरत मंदिर के दर्शन के लिए कैसे पहुंचा जा सकता है?

9. लेक पिछोला (Lake Pichola) आइये जानते हैं कि इस झील का क्या इतिहास रहा है? आइये जानते हैं कि पिछोला झील में कैसे घूमने जा सकते हैं?

10. सिटी पैलेस (City Palace Jaipur)

मुख्य पर्यटन स्थल

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यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल यहां के शासकों द्वारा बनवाई गई महलें, झीलें, बगीचें तथा स्मारक हैं। ये सभी चीजें सिसौदिया राजपूत शासकों के सदगुण, विजय तथा स्वतंत्रता की याद दिलाते हैं। इनका निर्माण उस समय हुआ जब मेवाड़ ने पहली बार मुगलों की अधीनता स्वीक‍ार की थी तथा बाद में अंग्रेजों की। आपको उदयपुर घूमने के लिए कम-से-कम तीन दिन का समय देना चाहिए। इसके आसपास के स्थानों को घूमने के लिए दो और दिन देना चाहिए।

सिटी पैलेस की स्थापना 16 वीं शताब्दी में आरम्भ हुई। इसे स्थापित करने का विचार एक संत ने राजा उदय सिंह को दिया था। इस प्रकार यह परिसर 400 वर्षों में बने भवनों का समूह है। यह एक भव्य परिसर है। इसे बनाने में 22 राजाओं का योगदान था। इस परिसर में प्रवेश के लिए टिकट लगता है। बादी पॉल से टिकट लेकर आप इस परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। परिसर में प्रवेश करते ही आपको भव्य 'त्रिपोलिया गेट' दिखेगा। इसमें सात आर्क हैं। ये आर्क उन सात स्मरणोत्सवों का प्रतीक हैं जब राजा को सोने और चांदी से तौला गया था तथा उनके वज़न के बराबर सोना-चांदी को गरीबों में बांट दिया गया था। इसके सामने की दीवार 'अगद' कहलाती है। यहां पर हाथियों की लड़ाई का खेल होता था। इस परिसर में एक जगदीश मंदिर भी है। इसी परिसर का एक भाग सिटी पैलेस संग्रहालय है। इसे अब सरकारी संग्रहालय घोषित कर दिया गया है। वर्तमान में शम्भूक निवास राजपरिवार का निवास स्थानन है। इससे आगे दक्षिण दिशा में 'फतह प्रकाश भवन' तथा 'शिव निवास भवन' है। वर्तमान में दोनों को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है।

इस संग्रहालय में प्रवेश करते ही आप की नज़र कुछ बेहतरीन चित्रों पर पड़ेगी। ये चित्र श्रीनाथजी, एकलिंगजी तथा चतुर्भुज जी के हैं। यह सभी चित्र मेवाड़ शैली में बने हुए हैं। इसके बाद महल तथा चौक मिलने आरम्भ होते हैं। इन सभी में इनके बनने का समय तथा इन्हें बनाने वाले का उल्लेख मिलता है। सबसे पहले राज्य आंगन मिलता है। इसके बाद चंद्र महल आता है। यहां से पिछोला झील का बहुत सुंदर नजारा दिखता है। बादी महल या अमर विलास महल पत्थरों से बना हुआ है। इस भवन के साथ बगीचा भी लगा हुआ है। कांच का बुर्ज एक कमरा है जो लाल रंग के शीशे से बना हुआ है। कृष्णा निवास में मेवाड़ शैली के बहुत से चित्र बने हुए है। इसका एक कमरा जेम्स टोड को समर्पित है। इसमें टोड का लिखा हुआ इतिहास तथा उनके कुछ चित्र हैं। मोर चौक का निर्माण 1620 ई. में हुआ था। 19 वीं शताब्दी में इसमें तीन नाचते हुए हिरण की मूर्त्ति स्थापित की गई। जनाना महल राजपरिवार की महिलाओं का निवास स्थान था।

लोकेशन: जगदीश मंदिर से 150 मीटर दक्षिण में। प्रवेश शुल्क:: वयस्कों के लिए 50 रु. तथा बच्चों के लिए 30 रु.। समय: सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक, सभी दिन खुला हुआ।

इस संग्रहालय में मेवाड़ से संबंधित शिलालेख रखे हुए हैं। ये शिलालेख दूसरी शताब्दी. ईसा पूर्व से 19 वीं शताब्दी तक हैं। यहां बहुत से प्रतिमाएं भी रखी हुई हैं। कृष्ण और रुक्मणी के मेवाड़ शैली में बने हुए बहुत से चित्र भी यहां रखे हुए हैं। इसमें खुर्रम (बाद में शाहजहां) का साफा भी रखा हुआ है। खुर्रम ने जब जहांगीर के खिलाफ विद्रोह किया था तो वह उदयपुर में ही रहा था।

लोकेशन: सिटी पैलेस परिसर में प्रवेश शुल्क:: 3 रु. समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक। शुक्रवार बंद।

यह गैलेरी धन के अपव्यय को दर्शाती है। राणा सज्जन सिंह ने 1877 ई. में इंग्लैण्ड के एफ एंड सी ओसलर एण्ड कंपनी से कांच के इन सामानों की खरीदारी की थी। इन सामानों में कांच की कुर्सी, बेड, सोफा, डिनर सेट आदि शामिल था। बाद के शासकों ने इन सामानों को सुरक्षित रखा। अब इन सामानों को फतह प्रकाश भवन के दरबार हॉल में पर्यटकों को देखने के लिए रखा गया है।

लोकेशन: फतह प्रकाश महल प्रवेश शुल्क:: वयस्कों के लिए 325 रु. तथा बच्चों के लिए 165 रु.। समय: सुबह 10 बजे से शाम 8 बजे तक। सभी दिन खुला हुआ।

सिटी पैलेस परिसर से 2 किलोमीटर की दूरी पर विंटेज तथा अन्य पुरानी कारों का अच्छा संग्रह है। यहां करीब दो दर्जन कारें पर्यटकों को देखने के‍ लिए रखी हुई हैं। इन कारों में 1934 ई. की रोल्स रॉयस फैंटम भी है। तथा 1939 ई. में काडिलेक कन्वेर्टिबल भी है। 1939 ई. में जब जैकी कैनेडी उदयपुर के दौरे पर आए थे तो इसी कार से घूमे थे।

प्रवेश शुल्क: 100 रु. समय: सुबह 9:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक। प्रतिदिन।

इस मंदिर की स्थापना 1651 ई.में हुई थी। यह मंदिर इंडो-आर्यन शैली में बना हुआ था। इस मंदिर में भगवान विष्णु तथा जगन्नाथ की मूर्त्ति स्थापित है।

समय: सुबह 5 बजे से दोपहर 2 बजे तक तथा शाम 4 बजे से रात 11 बजे तक।

यह पहले उदयपुर के प्रधानमंत्री अमरचंद वादवा का निवास स्थान था। यह हवेली पिछोला झील के सामने है। इस हवेली का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था। इस हवेली में 138 कमरे हैं। इस हवेली में हर शाम को 7 बजे मेवाड़ी तथा राजस्थानी नृत्य का आयोजन किया जाता है।

प्रवेश शुल्क‍: 25 रु. समय: सुबह 10 बजे से शाम 7 बजे तक। सभी दिन खुला।

भारतीय लोक कला संग्रहालय यहां से थोड़ी ही दूर पर स्थित है। यहां कपड़ों, चित्रों तथा कठपुतली की प्रदर्शनी लगाई जाती है।

लोकेशन: गंगौरघाट हवेली प्रवेश शुल्क:: भारतीयों के लिए 15 रु.तथा विदेशियों के लिए 25 रु.। समय: सुबह 9बजे से शाम 6 बजे तक। सभी दिन खुला।

इसका उपयोग मेवाड़ के राजपरिवार के लोगों के कब्रिस्तान के रूप में होता है। यहां मेवाड़ के 19 शासकों का स्मारक है। ये स्मारक चार दशकों में बने हैं। यहां सबसे प्रमुख स्मारक महाराणा अमर सिंह का है। अमर सिंह ने सिंहासन त्यागने के बाद अपना अंतिम समय यहीं व्यतीत किया था। इस स्थान का संबंध हड़प्पा सभ्यता से भी जोड़ा जाता है। यहां एक पुरातात्विक संग्रहालय भी है।

लोकेशन: शहर से 2 किलोमीटर पूर्व में प्रवेश शुल्क:: 3 रु. समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक। शुक्रवार बंद।

इसे मूल रूप से सज्जन घर के नाम से जाना जाता था। इसे सज्जन सिंह ने 19 वीं शताब्दी में बनवाया था। पहले यह वेधशाला के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह एक लॉज के रूप में तब्दील हो चुका है।

लोकेशन: शहर से 8 किलोमीटर पच्छिम में समय: सुबह 10बजे से 6 बजे तक। सभी दिन खुला।

उदयपुर के शासक जल के महत्त्व को समझते थे। इसलिए उन्होंने कई डैम तथा जलकुण्ड बनवाए थे। ये कुण्ड उस समय की विकसित इंजीनियरिंग का सबूत हैं। पिछोला, दूध तलाई, गोवर्धन सागर, कुमारी तालाब, रंगसागर, स्वरुप सागर तथा फतह सागर यहां की सात प्रमुख झीलें हैं। इन्हेंन सामूहिक रूप से उदयपुर की सात बहनों के नाम से जाना जाता है। ये झीलें कई शताब्दियों से उदयपुर की जीवनरेखा हैं। ये झीलें एक-दूसरें से जुड़ी हुई हैं। एक झील में पानी अधिक होने पर उसका पानी अपने आप दूसरे झील में चला जाता है।

उदयपुर के आसपास अन्य दर्शनीय स्‍थान

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(22 किलोमीटर उत्तर) यह एकलिंगजी से कुछ पहले स्थित है। नागदा का प्राचीन शहर कभी रावल नागादित्य की राजधानी थी। वर्तमान में यह एक छोटा सा गांव है। यह गांव 11वीं शताब्दी में बने 'सास-बहू' मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का मूल नाम 'सहस्त्रहबाहु' था जोकि यह नाम विकृत होकर सास-बहू हो गया है। यह एक छोटा सा मंदिर है। लेकिन मंदिर की वास्तुशैली काफी आकर्षक है। लोकेशन: राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 से 2 किलोमीटर पहले

(23 किलोमीटर उत्तर) यह मंदिर परिसर कैलाशपुरी गांव में स्थित है। एकलिंगजी को शिव का ही एक रूप माना जाता है। माना जाता है कि एकलिंगजी ही मेवाड़ के शासक हैं। राजा तो उनके प्रतिनिधि के रूप में यहां शासन करता था। इस मंदिर का निर्माण बप्पाी रावल ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। बाद में यह मंदिर टूटा और पुन: बना। वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराणा रायमल ने 15वीं शताब्दीत में करवाया था। इस परिसर में कुल 108 मंदिर हैं। मुख्यत: मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्त्ति स्थापित है। उदयपुर से यहां जाने के लिए बसें मिलती हैं। लोकेशन: राष्ट्री य राजमार्ग संख्या 8 पर समय: सुबह 4 बजे से 6:30 तक, 10:30 से दोपहर 1:30 तक तथा शाम 5:30 से रात 8 बजे तक।

(40 किलोमीटर उत्तर) यह एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। हल्दीघाटी इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। यह युद्ध 18 जून 1576 ई. को हुआ था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की हार हुई थी। इसी युद्ध में महाराणा प्रताप का प्रसिद्ध घोड़ा चेतक मारा गया था। अब यहां एक संग्रहालय है। इस संग्रहालय में हल्दीघाटी के युद्ध के मैदान का एक मॉडल रखा गया है। इसके अलावा यहां महाराणा प्रताप से संबंधित वस्तुओं को रखा गया है। प्रवेश शुल्क: 20 रु. समय: सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक। सभी दिन खुला हुआ।

(47 किलोमीटर उत्तर) यहां श्रीनाथजी का मंदिर है। यह मंदिर पुष्टिमार्ग संप्रदाय के अनुयायियों का सबसे पवित्र स्था न है। श्रीनाथजी भगवान कृष्ण के ही रूप हैं। इस संप्रदाय की स्थापना 16वीं शताब्दी में वल्लभाचार्य ने की थी। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति काले पत्थर की बनी हुई है। इस मूर्त्ति को औरंगज़ेब के कहर से सुरक्षित रखने के लिए 1669 ई. में मथुरा से लाया गया था। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए दिन में सात बार खोली जाती है, लेकिन हर बार सिर्फ आधे घण्टे के लिए। यह स्थाान पिच्चमवाई पेंटिग्स के लिए भी प्रसिद्ध है। उदयपुर से यहां के लिए बसें चलती हैं।

(66 किलोमीटर उत्तर पूर्व) राजसमंद झील कांकरोली तथा राजसमंद शहरों के बीच स्थित है। इस झील की स्थापना 17वीं शताब्दी में मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने की थी। इस झील का निर्माण गोमती, केलवा तथा ताली नदियों पर डैम बनाकर किया गया है। कांकरोली में झील के तट पर द्वारकाधीश कृष्णा का मंदिर है। यहां जाने के लिए उदयपुर से सीधी बस सेवा है।

[जयसमंद झील]

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(48 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व) यह भारत का सबसे बड़ा कृत्रिम झील है। यह झील 88 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। महाराणा जयसिंह ने इस झील का निर्माण 17वीं शताब्दी में गोमती नदी पर डैम बनाकर किया था। इसके तटबंध पर मार्बल का एक स्माीरक तथा भगवान शिव का एक मंदिर है। इस झील के दूसरी तरफ राजपरिवार के लोगों के गर्मियों में रहने के लिए महल बने हुए हैं। इस झील में सात द्वीप हैं। यह झील के चारों तरफ पहाडियां हैं। पहाडियों पर दो महल बने हुए हैं। इनमें से एक हवा महल तथा दूसरा रुठी रानी का महल है। यहां एक जयसमंद वन्याजीव अभ्याेरण भी है।

अभ्यांरण में प्रवेश शुल्कठ

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भारतीयों के लिए 10 रु. तथा विदेशियों के लिए 80 रु.। समय:सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक। सभी दिन खुला। यहां ठहरने के लिए जयसमंद आईलैंड रिजॉर्ट है।

यातायात सुविधाएं

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उदयपुर के सार्वजनिक यातायात के साधन मुख्यतः बस, ऑटोरिक्शा और रेल सेवा हैं।

हवाई मार्ग

सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर हवाई अड्डा है। यह हवाई अड्डा डबौक में है। जयपुर, जोधपुर औरंगाबाद, दिल्ली तथा मुंबई से यहां नियमित उड़ाने उपलब्ध हैं।

रेल मार्ग

यहां उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन नामक रेलवे स्टेशन है। यह स्टे‍शन देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर स्थित है। यह सड़क मार्ग से जयपुर से 9 घण्टे, दिल्ली से 14 घण्टे तथा मुंबई से 17 घण्टे की दूरी पर स्थित है।

करणी माता माता मन्दिर

करणी माता का मंदिर उदयपुर के दक्षिण भाग में माछला मंगरा पर स्थित है जिि

बाहरी कड़ियाँ

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